आदाब (90 डिग्री), जनाब।
मुसलमानो में दोहरे मापदंड की ऐसी स्थिति बन चुकी है जिससे उच्च शिक्षा प्राप्त से लेकर अंगूठा छाप तक ग्रस्त और लोग उनसे त्रस्त हैं। ‘दलाल’ का सर्टिफिकेट तो हम पहले से छपा कर रखते हैं, बस उसपर नाम भर भरना रहता है। अब ये स्क्रीन शॉट ही देखिए, ज़फर सरेशवाला कोई है, उसपर हमारे सीनियर हज़रत की प्रतिक्रिया। इसके ठीक विपरीत अपने ही इदारे के जिम्मेदारों द्वारा हो रहे भरष्टाचार, धांधली पर कभी किसी ‘तथाकथित और सर्वमान्य सीनियर’ हज़रत की तरफ से कोई आपत्ति या प्रतिक्रिया आम तौर पर नहीं आती। जनाब, पूरी दुनिया सरेशवाला के कृत्य और विचार से अवगत है, आप दुनिया को उससे अवगत क्यों नहीं कराते जिसकी ज़िम्मेवारी सर सय्यद ने आपके हवाले की थी और क़ौम-ओ- मिल्लत की रहनुमाँ के तौर पर सींचने के लिए अपने जीवनकाल में ‘इख्वानुन्नफसा’ की स्थापना की थी। सय्यद ने ‘असबाब बग़ावत-ए-हिन्द’ लिख कर अंग्रेजों के मुंह पर वो तमाचा जड़ा की अँगरेज़ बिलबिला कर रह गए लेकिन सर सय्यद के किरदार और क़लम को नकार नहीं सके। वो आपका/हमारा किरदार दुनिया को क्यों नहीं परोसते। हमारी कमज़ोर आवाज़ दुनिया के खिलाफ उठती भी है तो अमुवि प्रशासन की धांधलियों के खिलाफ क्यों नहीं उठती। इसके विपरीत ‘दायें और बाएं महाज़’ पर हमारा प्रहार इतना ज़बरदस्त क्यों होता है। अमुवि आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ से शायद सबकुछ बदल जाये, इस बदलाव की ज़िम्मेदारी मेरी, आपकी और पुरे मिल्लत इस्लामिया पर जायेगी। अपने आपको भी ज़िम्मेवार मानते हुए मैं कुछ सवाल अपने सीनियर और अमुवि के शिक्षकों से करना चाहता हूँ और मैं चहुंगा की वो भी मुझसे पूछें:
1. मुझसे सवाल वही पूछेगा जिसने अमुवि में जुगाड़ से कोई एडमिशन या बहाली न कराई हो।
2. स्वतंत्रता के बाद आपलोगों ने सामूहिक रूप से ऐसे कौन से कार्य किए जिससे मैं अपने आपको ‘ प्राउड अलिग’ कहूँ।
3. सर सैय्यद को शिक्षा के आंदोलन का जनक कहा जाता है, आपलोगों ने सामूहिक रूप से कितने संसथान बनाये।
4. इत्तेहाद के नाम पर आपलोग हमेशा एक होने की बात करते हो, इत्तेहाद क्या है, स्थायी या अस्थायी, मुद्दों के ऊपर इत्तेहाद या धर्म के नाम पर। धर्म के नाम पर तो बरेलविओं के साथ करूँ, देबन्दीओं के साथ या वहाबियों के साथ।अलिग के बीच इत्तेहाद, तो किसके ‘कांदु’ या अपना वाला, अपने में भी किसके साथ, हाफिज इल्यास, अदीब भाई, वसीम भिन्डी, खालिद मसूद, आज़म मीर, अज़मगढ़ी, बिहारी, सम्भली या जीबीएस का इत्तेहाद।
5. हम हमेशा आरएसएस को गाली देते हैं, हमारे पास आरएसएस हथकंडों को काटने का उत्तम संस्थानुगत साधन था ‘Old Boys Association’, हर शहर में 10-10000 तक अलिग हैं, कहीं कहीं अधिक। आपलोगों ने इस संस्था को शहर शहर बनाकर जोड़ने का कार्य क्यों नहीं किया।
6. ‘सर सय्यद डे’ को बिरयानी डे बना दिया, क्या 50 साल पहले भी ये बिरयानी डे ही था या पुरे साल किए अपने सामाजिक कार्यों की समीक्षा भी करते थे।
7. हम पूरी दुनिया में ब्याप्त भ्रष्टचार पर बात करते हैं, अमुवि में हो रहे भरष्टाचार पर क्यों नहीं, हम दूसरों को दल्ला कहते हैं अपनों को क्यों नहीं?
8. अमुवि सिर्फ एक शिक्षण संसथान नहीं, आपलोग ही कहते हैं, तो पढ़ने के इलावा आपलोगों ने हमें क्या सिखया, नेतागीरी, दलाली, चापलूसी। तो इसमें भी कहाँ हैं हमलोग।
9. कुछ लोगों का मानना है की अमुवि छात्र संघ में अब वो बात नहीं। हमलोग फिर किन लोगों को, किस समय के लोगों को अपना आदर्श मानें।
10. शिक्षकों से विनम्रता से पूछना चाहूँगा की आप अपने शिष्यों को क्या बना रहे हैं, डॉ., इंजीनियर, वकील, कलेक्टर, एसपी, ब्यवसाई या आदर्श पुरुष भी, भारतीय भी। अगर आदर्श पुरुष बना रहे तो कैसा, अपने जैसा आदर्शवादी या अपने नबियों, सहबियों या वालियों जैसा। अगर अपने जैसा तो क्या ऐसा ही जैसा आपने 31 जुलाई के ‘कोर्ट चुनाव’ या ऐसे मौक़ों पर हर बार दुनिया के सामने रखा ऐसा आदर्श। अगर नबियों, सहाबियों और वालियों वाला आदर्श तो फिर आपका आदर्श कैसा है, ‘मुनाफ़िक़ों’ जैसा। क्या सर सय्यद की शिक्षा यही थी ? आप अपने प्रोफेसर, रीडर, लेक्चरर के पद को बनाये रखने के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं। अगर आप खुद इतना गिर सकते हैं तो अपने शिष्यों को कहाँ तक गिरने की शिक्षा देंगे?
11. क्या अमुवि पूर्व छात्रों ने कभी राष्ट्र निर्माण (आरएसएस वाला राष्ट्र निर्माण नहीं) में भागीदारी पर अपनी समीक्षा की है, अगर नहीं तो क्यों ?
12. अमुवि का स्थान भारत में ‘तालीमी इदारों का खलीफा’ की रही है, आदरणीय शिक्षकों क्या आपने आदर्श विश्वविद्यालय का कर्तब्य निभाते हुए भारत के दूसरे संस्थानों को खड़ा होने में, सींचने और बनाने में सहायता की है या महज़ अपना ‘पेपर प्रेजेंट’ करने जाते रहे हैं ?
13. हिन्दू साम्प्रदायिकता पर पूरी ताक़त से प्रहार, मुस्लिम साम्प्रदायिकता पर खामोशी क्यों ?
14. अंत में, अगर अमुवि का अल्पसंख्यक दर्जा छिन जाता है तो क्या आपलोग सड़कों पर उतरकर 1967-81 का इतिहास दुहराने का जज़्बा रखते हैं? अगर हाँ तो उसकी क़यादत कौन करेगा, आप, कांग्रेस या उनके समाजवादी साथी ।
आशा है, मेरे जैसे हज़ारों ‘जूनियर’ के मर्म को समझते हुए आप ‘सीनियर और शिक्षक’ महोदय मेरे पत्र द्वारा कहीं बातों का संज्ञान लेने की कृपा करेंगे।।
सादर।।
आपका तनवीर आलम
—तनवीर आलम समाजवादी विचारक, समाजसेवी और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय पूर्व छात्र संगठन महाराष्ट्र, मुम्बई के अध्यक्ष हैं|
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